भीड़ में एक दिन जब मुझे तुम मिली,
लगा यूँ की खूब मिली,
मिली मुझे - ज़िंदगी .
यूँ मिलते मिलाते, हंसते खिलखिलाते,
आया---
हवा का झोंका एक दिन
एक तूफान - साथ लाया
लगने लगा यूँ - कुछ गुमा
रेत के पहाड़ में, पत्तो के ढेर तले,
गुम गयी ज़िंदगी,
गुम गयी तुम.
चारो दिशाओं में उड़ता धुआ था,
दिखाई देता न कोई पंछी परिंदा था,
दूर शितिज भी सिकुद्ती लालिमा लिए एकाकी खड़ा था,
वृक्ष भी बिन पत्तों के अकेला ही चला था,
की आया फिर हवा का तेज़ झौका ,
आँधियारे बादल छटने लगे
धुआ भी सिमटने लगा,
दिनकर की किरणों से संसार फिर तपने लगा,
ओस की बूँदो में चेहरा एक दिखने लगा,
लगा यूँ की--
मिल गयी ज़िंदगी
मिल गयी तुम.
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