Tuesday, July 5, 2011

खुशीयां लौट आईं

आँगन से तेरे चली गयी जो,
धुप थी या कोई सूरत भली

आँगन से तेरे चली गयी जो,
बगिया की महक, पक्षीयों की चहक
सपनो की झलक और आँखों की चमक
आँगन से तेरे चली गयी जो,

तेरे सिंह की परछाई थी
तेरे पीछे सदा चली आई थी
आँगन से तेरे चली गयी जो

समय एक सा खबी रहता नहीं
वक़्त इंतज़ार करता नहीं
वो आँगन कभी एकाकी रह सकता नहीं
जहाँ स्नेह के मोती बिखरते सदा

धुप को आसरा मिलता है बादल का
जब चलती है पुरवाई
इन्द्रधनुष  से नभ खिलता है, जब
वर्षा में धुप खिल आई'
साँझ ढले पक्षी लौट आतें है वृक्षों पर
सागर में साहिल से मिल फिर
नदिया भी मुस्काई
आँगन से तेरे चली गयी जो
धुप थी ......... फिर लौट आई

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